Monika garg

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लेखनी कहानी -17-Oct-2022# धारावाहिक लेखन प्रतियोगिता # त्यौहार का साथ# देव दीपावली

ऐसा तो सभी जानते है कि देव दिवाली, दीपावली के 15वें दिन मनाई जाती है। पुरानी कहावतों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि इस दिन देवी देवता धरती पर आकर दीपक जलाते है। देव दिवाली के दिन भगवान शिव और नारायण की पूजा की जाती है। 

दिवाली, दीपावली आदि आपने सुना ही होगा लेकिन शायद आप देव दिवाली के बारे में आज पहली बार पढ़ रहे होंगे। तो मैं आपको बता देता हूँ कि देव दिवाली भी दिवाली जैसे ही मनाई जाने वाला त्यौहार है। देव दिवाली वाराणसी में मनाया जाने वाला त्यौहार है। देव दिवाली का त्यौहार भगवान शिव जी का त्रिपुरासुर का वध करने पर देव दिवाली मनाई जाने लगी है।
सन् 1915 में पंचगंगा घाट वाराणसी पर देवदीपावली की परंपरा की शुरुआत की गयी। सबसे पहले यहां हजारों दिये जलाकर शुरुआत की गयी थी। प्राचीन परंपरा और संस्कृति में आधुनिकता की शुरुआत से कांशी ने विश्व स्तर पर एक नये अध्याय का आविष्कार किया था। जिससे यह विश्व विख्यात आयोजन लोगों को आकर्षित करने लगा है।

इस आविष्कार के चलते दुनिया भर के लोग यहां आते है और पूजा पाठ का आनंद उठाते है। देवदीवाली पर देवताओं के इस उत्सव में परस्पर सहभागी होते हैं- काशी, काशी के घाट, काशी के लोग। देवताओं का उत्सव देवदीवाली, जिसे काशीवासियों वाराणसी ने सामाजिक सहयोग से महोत्सव में परिवर्तित कर विश्व प्रसिद्ध कर दिया है। करोड़ों दीपकों और झालरों की रोशनी से रविदास घाट से लेकर आदिकेशव घाट व वरुणा नदी के तट एवं घाटों पर स्थित देवालय, महल, भवन, मठ-आश्रम जगमगा उठते हैं, वो दृश्या ऐसा प्रतीत होता है की जैसे काशी में पूरी आकाश गंगा ही उतर आयी हो।

धार्मिक एवं सांस्कृतिक नगरी काशी के ऐतिहासिक घाटों पर कार्तिक पूर्णिमा को माँ गंगा की धारा के समान्तर ही प्रवाहमान होती है। पुरानी सत्य पर आधारित कहानियों के अनुसार कहा जाता है की कार्तिक मास में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवतागण दिवाली मनाते हैं व इसी दिन देवताओं का काशी में प्रवेश हुआ था।

देव दिवाली की कहानी
जब तीनों लोकों में त्रिपुरासुर राक्षस का राज चला करता था। त्रिपुरासुर राक्षस एक गंदे व्यवहार था और इसके चलते पूरी जनता उससे परेशान थी। यहां तक की देव गण भी उससे परेशान थे तब जाकर देवतागणों ने भगवान शिव का आवाहन किया उनकी पूजा की और उनसे वरदान मांगा और वरदान में भगवान शिव से त्रिपुरासुर राक्षस का उद्धार करने की विनती की।

भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर उसके अत्याचारों से सभी को मुक्त कराया और त्रिपुरारी कहलाये। प्रसन्न होकर देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देव दिवाली मनायी जाने लगी।

काशी में देव दिवाली का त्यौहार मनाये जाने के सम्बन्ध में एक और मान्यता भी है कि राजा दिवोदास ने अपने राज्य काशी में देवताओं के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन रूप बदल कर भगवान शिव ने काशी के पंचगंगा घाट पर आकर गंगा स्नान कर ध्यान किया था, यह बात जब राजा दिवोदास को पता चली तो उन्हें अपने किए पर शर्मिंदगी महसूस हुई और फिर उन्होंने देवताओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को समाप्त कर दिया। तब जाकर इसी दिन सभी देवताओं ने काशी में प्रवेश कर लाखों की संख्या में दीप जला कर देवदीवाली मनाई थी।

 एक दिव्य त्योहार है। मिट्टी के बने लाखों दीपक गंगा नदी के पवित्र जल पर तैरते है। यह एक अजब ही नजारा दिखाता है।

देव दीपावली के पावन अवसर पर एक समान संख्या के साथ विभिन्न घाटों और आसपास के राजसी आलीशान इमारतों की छतों, सीढ़ियों दरवाजों के दोनों किनारों पर धूप और मंत्रों की पवित्र जप का एक अलग ही नजारा आता है और ये दृश्य ऐसा होता है की जैसे भगवान स्वयं ही असमान से जमीन पर आ गए हो।

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4 Comments

Mithi . S

08-Nov-2022 08:30 PM

Bahut achhi rachana

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Khan

07-Nov-2022 04:03 PM

Bahut khoob 😊🌸

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Palak chopra

07-Nov-2022 03:32 PM

Shandar 🌸🙏

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